Tuesday, July 05, 2011

गाँधी खानदानो के ट्रस्ट सुचना कानून के दायरे से बहार क्यों?

सोनिया गाँधी के मालिकाना हक वाले फ़ाउण्डेशनों और ट्रस्टों के हिसाब-किताब और सम्पत्ति के बारे में कई  बार  जानने की कोशिश की गयी। सूचना के अधिकार से सम्बन्धित बहुत से स्वयंसेवी समूहों, कुछ खोजी पत्रकारों एवं कुछ स्वतन्त्र पत्रकारों ने कई बार कोशिश की पर भिरस्ट सरकार ने कोशिशो को परवान नहीं चड़ने दिया आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पिछले 3-4 साल से माथाफ़ोड़ी करने के बावजूद अभी तक कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी, कारण  केन्द्रीय सूचना आयुक्त ने यह निर्णय दिया है कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन (Rajiv Gandhi Foundation) तथा जवाहरलाल मेमोरियल फ़ण्ड (Jawaharlal Memorial Fund) जैसे संस्थान सूचना के अधिकार कानून के तहत अपनी सूचनाएं देने के लिये बाध्य नहीं हैं। मामला अभी भी हाइकोर्ट तक पहुँचा है और RTI के सक्रिय कार्यकर्ताओं ने सूचना आयुक्त के अड़ियल रवैये के बावजूद हार नहीं मानी है।RGF के बारे में सूचना का अधिकार माँगने पर अधिकारी ने यह जवाब देकर आवेदनकर्ता को टरका दिया कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन सूचना देने के लिये बाध्य नहीं है। यह फ़ाउण्डेशन एक सार्वजनिक उपक्रम नहीं माना जा सकता,क्योंकि इस फ़ाउण्डेशन को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलता है, न ही सरकार की इसमें कोई भागीदारी है और न ही इसके ट्रस्टी बोर्ड के चयन/नियुक्ति में सरकार का कोई दखल होता है अतः इसे सूचना का अधिकार के कार्यक्षेत्र से बाहर रखा जाता है…”


उल्लेखनीय है कि 21 जून 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री के आदर्शों एवं सपनों”(?) को साकार रूप देने तथा देशहित में इसका लाभ बच्चों, महिलाओं एवं समाज के वंचित वर्ग तक पहुँचाने के लिये राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन की स्थापना की गई थी। RTI कार्यकर्ता श्री षन्मुगा पात्रो ने सिर्फ़ इतना जानना चाहा था कि RGF द्वारा वर्तमान में कितने प्रोजेक्ट्स और कहाँ-कहाँ पर जनोपयोगी कार्य किया जा रहा हैपरन्तु श्री पात्रो को कोई जवाब नहीं मिलातब उन्होंने सूचना आयुक्त के पैनल में अपील की। आवेदन पर विचार करने बैठी आयुक्तों की पूर्ण बेंचजिसमें एमएम अंसारीएमएल शर्मा और सत्यानन्द मिश्रा शामिल थेने इस बात को स्वीकार किया कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन (RGF) की कुल औसत आय में केन्द्र सरकार का हिस्सा 4% से कम हैलेकिन फ़िर भी इसे सरकारी अनुदान प्राप्तसंस्था नहीं माना जा सकता। इस निर्णय के जवाब में अन्य RTI कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन की स्थापना की घोषणा केन्द्र सरकार के वित्त मंत्री द्वारा बजट भाषण में की गई थी। सरकार ने इस फ़ाउण्डेशन के समाजसेवा कार्यों के लिये अपनी तरफ़ से एक फ़ण्ड भी स्थापित किया था। इसी प्रकार राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन जिस इमारत से अपना मुख्यालय संचालित करता है वह भूमि भी उसे सरकार द्वारा कौड़ियों के मोल भेंट की गई थी। शहरी विकास मंत्रालय ने 28 दिसम्बर 1995 को इस फ़ाउण्डेशन के सेवाकार्यों(?) को देखते हुए जमीन और पूरी बिल्डिंग मुफ़्त कर दीजबकि आज की तारीख में इस इमारत के किराये का बाज़ार मूल्य ही काफ़ी ज्यादा हैक्या इसे सरकारी अनुदान नहीं माना जाना चाहियेपरन्तु यह तर्क और तथ्य भी खारिज” कर दिया गया।
 
इस सम्बन्ध में यह सवाल भी उठता है कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन को तो सरकार से आर्थिक मदद, जमीन और इमारत मिली है, फ़िर भी उसे सूचना के अधिकार के तहत नहीं माना जा रहा, जबकि ग्रामीण एवं शहरी स्तर पर ऐसी कई सहकारी समितियाँ हैं जो सरकार से फ़ूटी कौड़ी भी नहीं पातीं, फ़िर भी उन्हेंRTI के दायरे में रखा गया है। यहाँ तक कि कुछ पेढ़ियाँ और समितियाँ तो आम जनता से सीधा सम्बन्ध भी नहीं रखतीं फ़िर भी वे RTI के दायरे में हैं, लेकिन राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन नहीं है। क्या इसलिये कि यह फ़ाउण्डेशन देश के सबसेपवित्र परिवार”(???) से सम्बन्धित है?
 
1991 में राजीव गाँधी के निधन के पश्चात तत्कालीन उपराष्ट्रपति ने राजीव गाँधी के सपनों को साकार करने और लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये एक ट्रस्ट के गठन का प्रस्ताव दिया और जनता से इस ट्रस्ट को मुक्त-हस्त से दान देने की अपील की।1991-92 के बजट भाषण में वित्तमंत्री ने इसकी घोषणा की और इस फ़ाउण्डेशन को अनुदान के रूप में 100 करोड़ रुपये दिये (1991 के समय के 100 करोड़, अब कितने हुए?)। इसी प्रकार के दो ट्रस्टों (फ़ण्ड) की स्थापना, एक बार आज़ादी के तुरन्त बाद 24 जनवरी 1948 को नेहरु ने नेशनल रिलीफ़ फ़ण्ड का गठन किया था तथा दूसरी बार चीन युद्ध के समय 5 नवम्बर 1962 को नेशनल डिफ़ेंस फ़ण्ड की स्थापना भी संसद में बजट भाषण के दौरान ही की गई और इसमें भी सरकार ने अपनी तरफ़ से कुछ अंशदान मिलाया और बाकी का आम जनता से लिया गया। आश्चर्य की बात है कि उक्त दोनों फ़ण्ड, अर्थात नेशनल रिलीफ़ फ़ण्ड और नेशनल डिफ़ेंस फ़ण्ड को सार्वजनिक हित का मानकर RTI के दायरे में रखा गया है, परन्तु राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन को नहीं
 

राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन को सरकार द्वारा नाममात्र के शुल्क पर 9500 वर्ग फ़ीट की जगह पर एक बंगला, दिल्ली के राजेन्द्र प्रसाद रोड पर दिया गया है। इस बंगले की न तो लाइसेंस फ़ीस जमा की गई है, न ही इसका कोई प्रापर्टी टैक्स भरा गया है। RGF को 1991 से ही FCRA (विदेशी मुद्रा विनियमन कानून 1976)के तहत छूट मिली हुई है, एवं इस फ़ाउण्डेशन को दान देने वालों को भी आयकर की धारा 80G के तहत छूट मिलती है, इसी प्रकार इस फ़ाउण्डेशन के नाम तले जो भी उपकरण इत्यादि आयात किये जाते हैं उन्हें भी साइंस एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च संगठन (SIRO) के तहत 1997 से छूट मिलती है एवं उस सामान अथवा उपकरण की कीमत पर कस्टम्स एवं सेण्ट्रल एक्साइज़ ड्यूटी में छूट का प्रावधान किया गया है… आखिर इतनी मेहरबानियाँ क्यों?
 

हालांकि गत 4 वर्ष के संघर्ष के पश्चात अब 2 मई 2011 को दिल्ली हाइकोर्ट ने इस सिलसिले में केन्द्र सरकार को नोटिस भेजकर पूछा है कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन को RTI के दायरे में क्यों न लाया जाए? उल्लेखनीय है कि हाल ही में मुम्बई में रिलायंस एनर्जी को भी RTI के दायरे में लाया गया है, इसके पीछे याचिकाकर्ताओं और आवेदन लगाने वालों का तर्क भी वही था कि चूंकि रिलायंस एनर्जी (Reliance Energy), आम जनता से सम्बन्धित रोजमर्रा के काम (बिजली सप्लाय) देखती है, इसे सरकार से अनुदान भी मिलता है, इसे सस्ती दरों पर ज़मीन भी मिली हुई है तो यह जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिये। अन्ततः महाराष्ट्र सरकार ने जनदबाव में रिलायंस एनर्जी को RTI के दायरे में लाया, अब देखना है कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन और इस जैसे तमाम ट्रस्ट, जिस पर गाँधी परिवार कुण्डली जमाए बैठा है, कब RTI के दायरे में आते हैं। जब राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन सारी सरकारी मेहरबानियाँ, छूट, कर-लाभ इत्यादि ले ही रहा है तो फ़िर सूचना के अधिकार कानून के तहत सारी सूचनाएं सार्वजनिक करने में हिचकिचाहट क्यों?

बाबा रामदेव के पीछे तो सारी सरकारी एजेंसियाँ हाथ-पाँव-मुँह धोकर पड़ गई थीं,क्या राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन, जवाहरलाल मेमोरियल ट्रस्ट इत्यादि की आज तक कभी किसी एजेंसी ने जाँच की है? स्वाभाविक है कि ऐसा सम्भव ही नहीं हैक्योंकि जहाँ एक ओर दूसरों की सम्पत्ति का हिसाब मांगने का अधिकार सिर्फ़ कांग्रेस को है वहीं दूसरी ओर अपनी सम्पत्ति को कॉमनवेल्थ, आदर्श, 2G औरKG गैस बेसिन जैसे पुण्य-कार्यों के जरिये ठिकाने लगाने का अधिकार भी उसी के पास सुरक्षित है पिछले 60 वर्षों से

4 comments:

नीरज द्विवेदी said...

बहुत ही सही मुद्ददा उठाया है आपने, हम जैसे नवयुवकों की आँखे खोलने के लिए. धन्यबाद

नीरज द्विवेदी said...

बहुत ही सही मुद्ददा उठाया है आपने, हम जैसे नवयुवकों की आँखे खोलने के लिए. धन्यबाद

Ratan Singh Shekhawat said...

हर पद पर इनके सेकुलर चमचे बैठे है आसानी से अपने मालिकों की करतूतों की पोल कैसे खोल दे?

Anonymous said...

आपने जो मुद्दा उठाया है..वो चोका देने वाला मुद्दा है.. आप से नम्र नीवेदन है की आप ही इस मुद्दे को मीडीया वालो को भेजे ओर ..पता करो..जब आन्ना जी ओर बाबा रामदेव के ट्रस्टो की सम्पती की जाच हो सकती है तो ..मीडीया ये मुद्दे पर क्यु चुप है. क्या मीडीया भी कोग्रस से डरती है या स्वीस बेन्क की रीपोर्ट मै मीडीया वालो के भी नाम खुले है?