Wednesday, June 22, 2011

दंगों में हिन्दू औरत का बलात्कार अपराध नहीं माना जाएगा?



सोनिया गाँधी के “निजी मनोरंजन क्लब” यानी नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) द्वारा सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-
1) कानून-व्यवस्था का मामला राज्य सरकार का है, लेकिन इस बिल के अनुसार यदि केन्द्र को “महसूस” होता है तो वह साम्प्रदायिक दंगों की तीव्रता के अनुसार राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकता है और उसे बर्खास्त कर सकता है…
(इसका मोटा अर्थ यह है कि यदि 100-200 कांग्रेसी अथवा 100-50 जेहादी तत्व किसी राज्य में दंगा फ़ैला दें तो राज्य सरकार की बर्खास्तगी आसानी से की जा सकेगी)…
2) इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा “बहुसंख्यकों” द्वारा ही फ़ैलाया जाता है, जबकि “अल्पसंख्यक” हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं…
3) यदि दंगों के दौरान किसी “अल्पसंख्यक” महिला से बलात्कार होता है तो इस बिल में कड़े प्रावधान हैं, जबकि “बहुसंख्यक” वर्ग की महिला का बलात्कार होने की दशा में इस कानून में कुछ नहीं है…
4) किसी विशेष समुदाय (यानी अल्पसंख्यकों) के खिलाफ़ “घृणा अभियान” चलाना भी दण्डनीय अपराध है (फ़ेसबुक, ट्वीट और ब्लॉग भी शामिल)…
5) “अल्पसंख्यक समुदाय” के किसी सदस्य को इस कानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती यदि उसने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ़ दंगा अपराध किया है (क्योंकि कानून में पहले ही मान लिया गया है कि सिर्फ़ “बहुसंख्यक समुदाय” ही हिंसक और आक्रामक होता है, जबकि अल्पसंख्यक तो अपनी आत्मरक्षा कर रहा है)…
इस विधेयक के तमाम बिन्दुओं का ड्राफ़्ट तैयार किया है, सोनिया गाँधी की “किचन कैबिनेट” के सुपर-सेकुलर सदस्यों एवं अण्णा को कठपुतली बनाकर नचाने वाले IAS व NGO गैंग के टट्टुओं ने… इस बिल की ड्राफ़्टिंग कमेटी के सदस्यों के नाम पढ़कर ही आप समझ जाएंगे कि यह बिल “क्यों”, “किसलिये” और “किसको लक्ष्य बनाकर” तैयार किया गया है…। “माननीय”(?) सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं – हर्ष मंदर, अरुणा रॉय, तीस्ता सीतलवाड, राम पुनियानी, जॉन दयाल, शबनम हाशमी, सैयद शहाबुद्दीन… यानी सब के सब एक नम्बर के “छँटे हुए” सेकुलर… । “वे” तो सिद्ध कर ही देंगे कि “बहुसंख्यक समुदाय” ही हमलावर होता है और बलात्कारी भी…
NAC द्वारा सांप्रदायिक एवं लक्ष्यित हिंसा विधेयक का जो मसौदा प्रस्तुत किया गया है, प्रमुख बिंदुओं से ऐसा प्रतीत होता है कि मसौदा बनाने वाले संभवतः देश के बहुसंख्यक समुदाय के विरुद्ध पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। साथ ही, ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार इस विधेयक के बहाने राज्य सरकारों के कामकाज में हस्तक्षेप करने और दंगों के बहाने दूसरे दलों की राज्य सरकारों को बर्खास्त करने का अधिकार प्राप्त करना चाहती है।
यदि मसौदे में स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि दंगा हमेशा “बहुसंख्यकों” द्वारा ही फैलाया जाता है और “अल्पसंख्यक” हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं, तो यह न केवल देश के शांतिप्रिय बहुसंख्यक समाज का, बल्कि संविधान में व्यक्त नागरिक-समानता की मूल-भावना का भी अपमान है। यह मसौदा स्पष्ट रूप से भेदभावमूलक और अन्यायपूर्ण है, जिसमें बलात्कार की शिकार महिलाओं के बीच भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेद किया जाना प्रस्तावित है। यह तो और भी आश्चर्यजनक है कि इस कानून के तहत अल्पसंख्यक समाज के किसी सदस्य को सज़ा ही नहीं दी जा सकती। समिति के चेयरमैन और वाइस-चेयरमैन का पद अल्पसंख्यक समाज के सदस्यों के लिये आरक्षित रखा गया है। इससे स्पष्ट है कि सरकार इस समिति के बहाने जानबूझकर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों के बीच गहरी खाई बढ़ाने के अवसर खोज रही है।
अब यह विधेयक संसद में रखा जाएगा, फ़िर स्थायी समिति के पास जाएगा, तथा अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इसे पास किया जाएगा, ताकि मुस्लिम वोटों की फ़सल काटी जा सके तथा भाजपा की राज्य सरकारों पर बर्खास्तगी की तलवार टांगी जा सके…। यह बिल लोकसभा में पास हो ही जाएगा, क्योंकि भाजपा(शायद) के अलावा कोई और पार्टी इसका विरोध नहीं करेगी…। जो बन पड़े उखाड़ लो…

कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार इस विधेयक के बहाने अल्पसंख्यक वोट-बैंक सुरक्षित करने और विपक्षी दलों की राज्य सरकारों के कार्य में बेवजह हस्तक्षेप करने का अधिकार प्राप्त करने के साथ-साथ बहुसंख्यक समाज के मन में भय उत्पन्न करने का प्रयास कर रही है। इस तरह के पूर्वाग्रह-युक्त किसी भी विधेयक को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिये और सभी स्तरों पर इसका कड़ा विरोध होना चाहिए।

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